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Tuesday, May 13, 2014

श्री सच्चिदानन्द स्तवन


सिद्धाश्रमोयं परमं विदुषं, ज्ञानं दिव्यं महतं महितं  
आत्मेव नित्यं परमं पवित्रं, दिव्यात्म रुपं प्रणवं नमामी।।

आविर्हताम परमं वदेवं, ॠग्वेद रुपं ज्ञेयं स्वरुपं  
यज्ञोत्वतां पूर्ण मदैव नित्यं, विज्ञान रुपं सत चित स्वरुपं ।।

ज्ञानर्वदा वदितं ब्रह्माण्ड रुपं, नित्यं वदैव वहितं सहितं सदेवं
शब्दोवतां व्यर्थ मदैव नित्यं, किं पुर्व परं वहितं महितं नित्यं ।।

शिष्योर्वतां वै परीपूर्ण रुपं, विव्हल स्वरुपं आत्मन नित्यं
आज्ञोवताम वै परमं पवित्र, पूर्णत्व रुपं गुरुवं नमामी।। 

स्मरणं वदेवं वदितं वदेवं, गुरुदेव नित्यं महिनां स्वरुपम  
आत्मोच्छवास वहितं सहितं सदेवं, शब्दोवतां वै गुरुवे परेशं ।।

तातो माता, बन्धु र्न भ्राता, रुपं ज्ञानं चिन्त्यं नित्यं
योगं मन्त्रं तन्त्रं नित्यं, सत चित स्वरुपं मन्त्रं तन्त्रं ।।  

Aawahayaami (आवाहयामी)


आवाहयामी आवाहयामी
आवाहयामी आवाहयामी।। 

दिर्घोष देवां परीपूर्ण सिन्धुं
ज्ञानेव रुपं पारीचिन्तयामी। 
सिन्धु वतां पूर्ण मदैव तुभ्यं
गुरुत्वं शरण्यं गुरुत्वं शरण्यं।। 

जानामी पूजां जानामी ध्यानं,
जानामी वेदो वेद वाक्यं। 
जानामी तिर्थो ध्यानं चैवं
एकोही मन्त्रं गुरुत्वं शरण्यं।।



तातो माता बन्धु र्न भ्राता
पुत्रो पुत्री भ्रित्योर भर्ता। 
जाया वित्तं ब्रितिर्ममेवं
त्वमेवं शरण्यं त्वमेवं शरण्यं।। 

त्वं ब्रह्म रुपं रुद्र स्वरुपं
बिष्णु स्वरुपं देव स्वरुपं। 
आत्म स्वरुपं ब्रह्म स्वरुपं
गुरुत्वं शरण्यं गुरुत्वं शरण्यं।। 

आवाहयामी परीपूर्ण सिन्धुं
त्वमेवं सदाहं परीपश्र्वरुपं। 
आवाहयामी गुरुवे वदन्तं
त्वमेवं शरण्यं त्वमेवं शरण्यं।।

शिशुमेव रुपं ज्ञानं ध्यानं
एकोही चिन्त्यं भगवतस्वरुपं।
आवाहयामी मम प्राण रुपं,
त्वमेवं शरण्यं त्वमेवं शरण्यं।। 

आवाहयामी आवाहयामी
आवाहयामी आवाहयामी।।